मोदी बोले- जैसे सत्ता में रहते हुए संयम जरूरी होता है, वैसे ही हर विद्वान को जिम्मेदार रहना पड़ता है

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल की विश्व भारती यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल हुए। मोदी ने छात्रों को संबोधित करते हुए एजुकेशन और स्किल पर जोर दिया। साथ ही आतंकवाद पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि आप क्या करते हैं, इस बात पर निर्भर करता है कि आपका माइंडसेट कैसा है।



मोदी के भाषण की अहम बातें

आपकी स्किल गौरवान्वित भी कर सकती है तो बदनाम भी कर सकती है
प्रधानमंत्री ने कहा कि जिस प्रकार सत्ता में रहते हुए संयम और संवेदनशील रहना पड़ता है, रहना जरूरी होता है। उसी प्रकार हर विद्वान को, हर जानकार को भी उनके प्रति जिम्मेदार रहना पड़ता है जिनके पास वो शक्ति है। आपका ज्ञान सिर्फ आपका नहीं बल्कि समाज की, देश की, भावी पीढ़ियों की भी धरोहर है। आपका काम, आपकी स्किल एक समाज को एक राष्ट्र को गौरवान्वित भी कर सकती है और वो समाज को बर्बादी और बदनामी के अंधकार में भी धकेल सकती है।

जो दुनिया में आतंक फैला रहे, उनमें भी कई हाईली स्किल्ड हैं
प्रधानमंत्री ने कहा कि इतिहास और वर्तमान में ऐसे अनेक उदाहरण हैं। आप देखिए...जो दुनिया में आतंक फैला रहे हैं, जो दुनिया में हिंसा फैला रहे हैं, उनमें भी कई हाईली एजुकेटेड, हाईली लर्नेड, हाईली स्किल्ड लोग हैं। दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जो कोरोना जैसी महामारी से दुनिया को मुक्ति दिलाने के लिए दिन रात अपनी जान की बाजी लगाकर अस्पतालों में डटे रहते हैं। प्रयोगशालाओं में जुटे हुए हैं। ये सिर्फ विचारधारा का प्रश्न नहीं है। मूल बात तो माइंडसेट की है।

मोदी ने कहा कि आप क्या करते हैं, इस बात पर निर्भर करता है कि आपका माइंडसेट पॉजिटिव है या निगेटिव है। स्कोप दोनों के लिए है। रास्ते दोनों के लिए ओपन हैं। आप समस्या का हिस्सा बनना चाहते हैं या फिर समाधान है। ये तय करना हमारे अपने हाथ में होता है।

गुरुदेव ने लिखा था- देश को एकसूत्र में पिरोना है
मोदी ने कहा कि आज छत्रपति शिवाजी की जयंती पर भारत के लोगों को बहुत बधाई देता हूं। गुरुदेव ने भी शिवाजी पर कविता लिखी थी- 'एक शताब्दी से पहले किसी अनाम दिन, मैं उस दिन को आज नहीं जानता। किसी पर्वत की ऊंची चोटी पर, किसी जंगल में आपको ये विचार आया था कि आपको देश को एकसूत्र में पिरोना है, खुद को एक देश के लिए समर्पित करना है।'

प्रधानमंत्री ने कहा कि टैगोर की इसी भावना को जीवित रखना है। गुरुदेव इसे यूनिवर्सिटी के रूप में देखना चाहते तो इसे कोई और नाम भी दे सकते थे। पर उन्होंने इसे विश्वभारती नाम दिया। गुरुदेव की विश्वभारती से अपेक्षा थी कि जो यहां सीखने आएगा वो दुनिया को भारतीयता की दृष्टि से देखेगा। उन्होंने इसे सीखने का ऐसा स्थान बनाया जो यहां न केवल शोध करें, बल्कि गरीबों के लिए भी काम करें। पहले यहां से निकले छात्रों ने यही किया। आपसे भी यही उम्मीद है।

गुरुदेव ने देश को शिक्षा की परतंत्रता से मुक्त करने की व्यवस्था की
मोदी ने कहा कि फैसला लेने में मुश्किल होने लगे तो इसे संकट मानना चाहिए। आज का युवा फैसला लेने में सक्षम है। मेरे साथ युवाओं की ताकत है। जीवन के पड़ाव में अनेक अनुभव मिलेंगे। भारत पर ब्रिटिश एजुकेशन सिस्टम थोपे जाने से पहले थॉमस मुनरो ने भारत की शिक्षा व्यवस्था की ताकत को अनुभव किया था। विलियम एडम ने 1830 में पाया था कि भारत में 1800 से ज्यादा ग्रामीण स्कूल थे। अंग्रेजों के कालखंड और उसके बाद हम कहां से कहां पहुंच गए। गुरुदेव ने शिक्षा व्यवस्था विकसित की, वह भारत को शिक्षा की परतंत्रता से मुक्त करने के लिए की थी।

छात्रों से कहा- दुनिया आपसे बहुत कुछ चाहती है
प्रधानमंत्री ने कहा कि बंगाल एक भारत-श्रेष्ठ भारत की प्रेरणास्थली और कर्मस्थली रहा है। आज भी नजरें आप पर हैं। ज्ञान को कोने-कोने में पहुंचाने में विश्वभारती की बड़ी भूमिका है। आज भारत जो है, जो मानवीयता हमारे कण-कण में है, उसे देखते हुए विश्वभारती को नेतृत्व करना चाहिए। जब आजादी के 100 साल होंगे, तब तक विश्वभारती के सबसे बड़े लक्ष्य क्या होंगे, इस पर गुरुजनों के साथ बात करें। बापू जो ग्राम स्वराज की बात करते थे, क्या वह साकार हो सकती है। आप अपने संकल्पों को सिद्धि में बदलें। आज दुनिया आपसे बहुत कुछ चाहती है। 21वीं सदी में भारत ऊंचा स्थान हासिल करे, इसके लिए और बेहतर प्रयास करने होंगे।

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